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शुतुरमुर्ग के तीन जठरांत्र

प्रकृति के कारखाने की अपनी शैली है। अगर आदमी के शरीर में छोटी सी पथरी बन जाए तो चाहे वो किडनी में हो या पत्ते में, उसके दर्द से चीखें निकल जाती है। दूसरी तरफ एक शुतुरमुर्ग है।ये पक्षी उड़ नहीं सकता लेकिन एक तेंदुए जितना दौड़ सकता है। एक छलांग में कई मीटर पार कर सकता है। इस शुतुरमुर्ग के पेट में एक किलो तक पत्थर होते हैं जो उसने खुद इकट्ठा किये होते है। शुतुरमुर्ग के तीन जठरांत्र, मेदे होते हैं। यह अन्य पक्षियों की तरह मूत्र और बिट इकट्ठा नहीं करता बल्कि अलग करता है। उसके दांत भी नहीं है। यही कारण है कि वह खाना निगल जाता है और पेट में मौजूद इन पत्थरों के साथ रगड़ रगड़ कर इसे पेस्ट करता है। जंगल के मैदान में, आप हमेशा ज़ेबरा के साथ शुतुरमुर्ग को घास खाते देखेंगे। क्योंकि ज़ेबरा के सूंधने की ताक़त कमाल की होती है लेकिन उसकी नज़रे कमज़ोर होती हैं। दूसरी तरफ शुतुरमुर्ग की नज़रें अद्भुत है लेकिन सुनने में कमज़ोर होता है। यही कारण है कि वे एक साथ रहते हैं। उंची घास शुतुरमुर्ग खाता है। ज़मीन के पास की ज़ेबरा खाता है। दुश्मन, शेर, जंगली कुत्ते, आदि अगर दूर से आ रहे हों, तो उन पर शुतुरमुर्ग नज़र रखत...

शुतुरमुर्ग के तीन जठरांत्र

प्रकृति के कारखाने की अपनी शैली है। अगर आदमी के शरीर में छोटी सी पथरी बन जाए तो चाहे वो किडनी में हो या पत्ते में, उसके दर्द से चीखें निकल जाती है। दूसरी तरफ एक शुतुरमुर्ग है।ये पक्षी उड़ नहीं सकता लेकिन एक तेंदुए जितना दौड़ सकता है। एक छलांग में कई मीटर पार कर सकता है। इस शुतुरमुर्ग के पेट में एक किलो तक पत्थर होते हैं जो उसने खुद इकट्ठा किये होते है।

शुतुरमुर्ग के तीन जठरांत्र, मेदे होते हैं। यह अन्य पक्षियों की तरह मूत्र और बिट इकट्ठा नहीं करता बल्कि अलग करता है। उसके दांत भी नहीं है। यही कारण है कि वह खाना निगल जाता है और पेट में मौजूद इन पत्थरों के साथ रगड़ रगड़ कर इसे पेस्ट करता है।

जंगल के मैदान में, आप हमेशा ज़ेबरा के साथ शुतुरमुर्ग को घास खाते देखेंगे। क्योंकि ज़ेबरा के सूंधने की ताक़त कमाल की होती है लेकिन उसकी नज़रे कमज़ोर होती हैं। दूसरी तरफ शुतुरमुर्ग की नज़रें अद्भुत है लेकिन सुनने में कमज़ोर होता है। यही कारण है कि वे एक साथ रहते हैं। उंची घास शुतुरमुर्ग खाता है। ज़मीन के पास की ज़ेबरा खाता है। दुश्मन, शेर, जंगली कुत्ते, आदि अगर दूर से आ रहे हों, तो उन पर शुतुरमुर्ग नज़र रखता है क़रीब हों तो ज़ेबरा के नाक और कान उन पर लगे रहते हैं और फिर दौड़ एक साथ लगाते हैं।

हे मानव! इन जानवरों और पक्षियों से ही एक साथ मिलजुलकर जीना सीखो। क्यों दूसरों केलिए दर्द बनते हो? जबकी खुद के दर्द को सहने की ताकत भी नहीं होती। क्या आपको लगता है दर्द देकर बदले में दर्द नहीं मिलेगा.? ये दुनिया का अस्तित्व ही लेन-देन पर है।

Comments

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